किसका घोटाला, कौन सा घोटाला

राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के बाद इतना असहाय क्यों हो जाते हैं कि उनको अच्छे बुरे में फर्क नजर नहीं आता। खासकर उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में यह बात कह रहा हूं। राज्य में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब भाजपा तमाम घोटाले होने की बात कहकर आंदोलनों पर उतारू थी। अब जब भाजपा राज्य में है तो उसको वो घोटाले याद नहीं आ रहे, जिनको लेकर वह रोजाना सड़कों पर थी।

आपदा राहत घोटाला भुला दिया गया। उत्तराखंड में कोई भी इस घोटाले पर अब कुछ बोलने को तैयार नहीं है। जबकि भाजपा ने इसको बड़ा मुद्दा बनाया था। हालांकि इस मामले में सरकार के स्तर पर कराई गई जांच में कुछ ऐसा नहीं निकलने का दावा किया गया था, जिससे किसी पर कार्रवाई की जा सके। पू्र्व की कांग्रेस सरकार ने इस मामले को हमेशा के लिए दबा दिया था। क्योंकि यह मामला उसके कार्यकाल का ही था, भले ही मुख्यमंत्री पद पर कोई और विराजमान थे।

उत्तराखंड को मजबूत लोकायुक्त नहीं मिल पाया। पूर्व में कार्यरत लोकायुक्त की संस्तुतियों पर भी किसी सरकार की कोई ऐसी कार्रवाई सामने नहीं आई, जिस पर कहा जा सके कि राज्य में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए कोई भी दल बढ़ चढ़कर कार्य करने की नीयत रखता है। 

उत्तराखंड के एनएचएम दवा घोटाले की रिपोर्ट औऱ इस पर लोकायुक्त और सूचना आयुक्त की संस्तुतियां सचिवालय में किसी सख्त कार्रवाई का इंतजार कर रही हैं। लेकिन इस बात की कम ही उम्मीद है कि कोई कार्रवाई होगी। 

राज्य में अवैध खनन पर सख्ती के बड़े दावे किए गए थे। अवैध खनन का एक भी बड़ा मामला सामने नहीं आ सका। इसका मतलब यह है कि राज्य में अवैध खनन नहीं हो रहा। हरिद्वार में मातृसदन के स्वामी शिवानंद मुखर होकर अवैध खनन का विरोध कर रहे हैं। इससे साफ है कि हरिद्वार में अवैध खनन चल रहा है। 








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